बिंदास बोल @ पीएलएफ : थर्ड डे
सावन के नज़ारे हैं, सावन के नजारे हैं,
कलियों के आंखों में मस्ताने इशारे हैं
चालीस के दशक के इस लोकप्रिय गीत ने समानान्तर साहित्य उत्सव के तीसरे दिन के माहौल को सुरनुमा बनाया और कुछ यूं हुई इस सत्र की सिनेमाई शुरुआत। इस सत्र मे "विभाजन से पहले लाहौर का फ़िल्म उद्योग कैसा था" विषय पर पत्रकार और शोधकर्ता अजय ब्रह्मात्मज से चर्चा की विविध भारती के उदघोषक युनूस खान ने। चर्चा में विभाजन से पहले के फिल्मी सिनेमा के बारे में बातचीत की गई। जहां ब्रह्मात्मज ने हिंदी सिनेमा की नींव को लाहौर से जुड़ा बताया। साथ ही उन्होंने उस समय के सिनेमा पर किये जा रहे शोध के सम्बन्ध में दस्तावेजों के एकत्रीकरण की दिक्कतों के बारे में भी बताया। दस्तावेज रखने को लेकर लापरवाह सिनेमा का एक उदाहरण देते हुए पैनल परउपस्थित पवन झा ने गांधी की रचनाओ नम्रता के सागर का जिक्र किया, जिसके दस्तावेजों को भी सम्भालकर नहीं रखा गया। साथ ही उनका कहना था कि सिनेमा और फिल्मी गानो की वजह से ही हिंदी और उर्दू जैसी भाषाएं जिंदा है। ब्रह्मात्मज ने सिनेमा में के.एल.सहगल के योगदान का भी जिक्र किया। वहीं उन्होंने कहा कि हिंदी सिनेमा विभाजन जैसे मुद्दों पर गिनी चुनी फिल्में ही बनाता है। दरअसल हकीकत यह है कि यह अपने जख्मों को नहीं कुरेदना चाहता। यह सिर्फ सपने बेचता हैं। वहीं उन्होंने लाहौर के फ़िल्म उद्योग के बारे में कहा कि इसने हिंदी सिनेमा को दिलीप कुमार, पृथ्वीराज कपूर, मोहम्मद रफी जैसे दिग्गज दिये। वहीं उन्होंने नूरजहां, नौशाद, गुलाम हैदर का भी जिक्र किया। इस रोचक बातचीत में लाहौरी सिनेमा के राजस्थान से रिश्ते पर भी बात हुई।
समाज को छूती देवेश अखल की कहानियों पर रोचक बातचीत
शंखनाद: देवेश अखल सत्र में आज के भारतीय समाज से साक्षात्कार करती कहानियों पर सत्र हुआ, जहां कहानीकार देवेश से डॉ. प्रणु शुक्ला ने रोचक बातचीत की। सत्र में वरिष्ठ रचनाकार ममता कालिया और दुर्गा प्रसाद अग्रवाल ने भी उपस्थिति दर्ज की। प्रणु ने देवेश से उनकी कहानियों के किरदार और इसकी बुनावट के इर्द – गिर्द रोचक सवाल किए और श्रोताओं ने भी इस बातचीत में भरपूर जोश के साथ हिस्सा लिया।
किताब नलिन सरोवर पर हुई बातचीत
उलझे सुलझे केश है तेरे,
रांझण जैसा वेश है तेरा,
भवर है कमान, तीर नैन कटीले,
लब है जैसे सुर्ख गुलाब
जैसी पंक्तियों से सुसज्जित काव्य किताब नलिन सरोवर के बारे में बात की गयी। समानान्तर साहित्य उत्सव के किताब गुवाड़ी मंच पर हुए कार्यक्रम में कवि डॉ नलिन जोशी ने अपनी किताब के बारे में बताया। उनका यह संग्रह प्यार और मानवीय रिश्तो की खुशबू को बयां करता है। किताब में कवि ने प्रकृति के मोहक बिंब रचे हैं।
कविताएं और नाट्य ध्वनियां हमेशा से हमारे समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रही हैं, चाहे वह रवीन्द्रनाथ टैगोर की कविताएं हो या राजकमल चौधरी की रचनाएं, सभी ने समाज पर अपना एक असर छोड़ा है। मौका था, समानान्तर साहित्य उत्सव में आयोजित कविताओं के नाटकीय वाचन का। चर्चा में शामिल रहे राजस्थान संस्कृत अकादमी के निदेशक और प्रसिद्ध कवि संजय झाला और वरिष्ठ रंगकर्मी रुचि भार्गव नरूला। सत्र में संजय महावर द्वारा धूमिल की कविता मोचीराम का वाचन किया गया। वहीं युवा रंगकर्मी प्रतिभा पारीक ने रवींद्रनाथ टैगोर की रचना कच्छ या देवयानी का नाटकीय वाचन किया। सत्र में कवि ने नाट्य और काव्य को एक दूसरे का पूरक बताया। वहीं उनका कहना था कि कवि को कुशल वक्ता और वाकपटु होना चाहिए।
कार्यक्रम में लीलाधर जगूड़ी की बलदेव खटीक और राजकमल चौधरी की मुक्तिप्रसंग का युवा रंगकर्मियों द्वारा नाटकीय वाचन किया गया। साथ ही पैनलिस्ट रुचि भैरव नरूला ने भी नन्दिनी गाय अंश का वाचन कर माहौल को आनन्दित किया। वही संजय झाला ने अपने हास्य नाट्य वाचन से समा बांध दिया।
💥गांधी और कई महत्वपूर्ण लेखकों पर पेंटिंग्स बनाने वाले रामकिशन अडिग और एस.सी.मेहता की मांडणा पर आधारित प्रदर्शनी भी समानांतर साहित्य उत्सव का खास आकर्षण बनी।
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