प्रधानमंत्री का संबोधन मरघटिया राग-सा हुआ प्रतीत.. देशवासियो, बहनो-भाईयो जैसे लोक-लुभावन शब्दों का बार-बार दोहराना भी रहा गायब : सत्य पारीक
बिंदास बोल @ जयपुर : प्रधानमंत्री के राष्ट्र के नाम का भरी दोपहर में कोरोना काल का तेरहवीं बार सम्बोधन सुन कर हृदय गदगद हो गया, क्योंकि देश में कोरोना से बचाव के अलावा कोई टेंशन ही नहीं, फालतू में ही चीन-चीन चिल्ला रहें है सब ? क्योंकि प्रधानमंत्री ने अपने सम्बोधन मे ऐसा कुछ बताया ही नही, फिर दूसरों की बकवास पर क्यों भरोसा करें। केंद्र सरकार अस्सी करोड़ लोगों को छठ मैय्या के त्यौहार तक गेंहू, चावल, चना व दाल फ्री देगी, बताइये ऐसी कल्याणकारी सरकार विश्व के किस देश में है? भक्तों को ताली बजाने का भरपूर अवसर देते हुए बताया कि 'एक देश के प्रधानमंत्री पर मास्क नहीं लगाने पर तेरह हजार का जुर्माना किया गया ' जो भारत के नहीं है , हालांकि जब उन्होने अपना ये संदेश रिकॉर्ड कराया होगा तब दो चार लोग तो वहां होंगे ही, हो सकता है उन्होंने मास्क लगाया हो मग़र ..जुर्माना वाली घटना सुनाते वक्त स्वंय प्रधानमंत्री ने मास्क नहीं लगाया था इसे सारे देश ने देखा। मानसून से लेकर सभी त्योहारों, सभी बीमारियों के बारे में प्रधानमंत्री के श्रीमुख से सुन कर देशवासी गदगद हो गये, मग़र कावड़ियों को नाराज कर दिया जो प्रतिवर्ष सावन मे शिव भक्ति मे अपना समय काटते हैं। अपने देश के बुद्धजीवी कहे जाने वाले तबके ने जो प्रधानमंत्री के सम्बोधन को लेकर कयासबाजी के पुल बांधे थे वो तो धराशाई हो गये। खबरिया चैनलों वाले लगातार कह रहे थे प्रधानमंत्री महोदय चीन पर बोलेंगे, बैन किये गये 59 एप पर तो कहेंगे ही, लेकिन सभी के कयास असफल और उन्होने पूरा धता बता कर अपना ही मरघटिया-राग अलाप दिया, जिसमें बहनों-भाइयो, देशवासियों जैसे लोक-लुभावन शब्दो का बार बार दोहराना भी गायब रहा । पैकेज तो और दे दिया भर लो पेट, लेकिन किसी राज्य को फूटी कौड़ी नहीं देने का मूक सन्देश दे दिया। मध्यमवर्गीय लोगो के प्रति कोई दरियादिली नही दिखाई, वो चाहे पैट्रोल व डीजल की बढती कीमत का बोझ सहते रहे। प्रधानमंत्री के सन्देश से एक बात साफ है कि "देश की चिंता उनकी सरकार नहीं करती" जनता करे तो वह जाने..आज के सन्देश से चीन, पाक, नेपाल को कोई खतरे वाला सन्देश नहीं मिला क्योंकि वे हमारे मित्र राष्ट्र हैं । प्रधानमंत्री से यह तो आशा थी कि वे कम से कम कोरोना महामारी से मरने वालों के परिजनों को तो ढाढस बंधा देते। चीन सीमा पर जो वीर सैनिक शहीद हुए उन्हें तो अपने पिछले सम्बोधन में "मरते मरते शहीद हुए बता गये थे " ऐसा निराशाजनक राष्ट्र के नाम संदेश किसी देश का प्रमुख विश्व में इनके अलावा कोई राष्ट्र प्रमुख नहीं देता होगा जब देश में चारों ओर समस्याए व चुनौती हो ।
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