निराशा का पुराना मर्तबान तोड़ दो


बिंदास बोल @ कविता


✍️हेमलता शर्मा


मंजिलों की तलाश में


ना भटको,


नए रास्तों पर बढ़ चलो ।


ना बैठो अभी से थक कर,


यायावरी को अपनी


नया मोड़ दो।


मन की फटी बिवाई पर,


आशा का पैबंद लगा


उम्मीद की चादर ओढ़ लो।


विश्वास के धागे से,


टूटे होंसलों को


फिर से जोड़ दो।


तब्बसुम की खातिर ही सही ना तोड़ो फूल, 


शाखों पर ही रहने दो


ज़िद अपनी छोड़ दो।


कुछ हासिल होता नहीं,


मायूसी के सायों से,


अब निराशा का 


पुराना मर्तबान तोड़ दो।


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