जैन श्रद्धालुओ ने वीतराग धर्म का "उत्तम आकिंचन्य लक्षण" मनाया

💥उत्तम आकिंचन गुण जानो, परिग्रह चिन्ता दुख ही मानो..


💥जैन श्रावको ने घरों में की पूजा-अर्चना  


💥ओनलाइन हुए प्रवचन व प्रतियोगिताएं


बिंदास बोल @ जयपुर : दिगम्बर जैन धर्मावलंबियों के दशलक्षण महापर्व के दौरान सोमवार को वीतराग धर्म का 'उत्तम आकिंचन्य' लक्षण भक्ति भाव से मनाया गया। सायकांल ऑन लाइन सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए । दर्शनार्थियों के लिए मंदिर बन्द होने के कारण घरों में ही आकिंचन्य धर्म की पूजा अर्चना व महाआरती की गई। राजस्थान जैन युवा महासभा जयपुर की ओर से ऑन लाइन जैन धर्म के हीरे मोती कार्यक्रम का आयोजन किया गया । राजस्थान जैन युवा महासभा के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप जैन ने बताया कि जैन धर्म के हीरे मोती कार्यक्रम के मुख्य अतिथि समाजश्रेष्ठी अरविन्द व सुनीता पाटनी (दीवान) थे। संयोजक पूनम तिलक थी ।


इससे पूर्व उत्तम आकिंचन्य धर्म के प्रवचन हुए जिसमें बताया कि विचारों का परिग्रह वस्तु के परिग्रह से भी भयंकर होता है। परिग्रह दसवां ग्रह है जो जीवन को बर्बाद करता है। आकिंचन्य का मतलब है कि किंचित मात्र भी मेरा नही है। ना तेरा है ना मेरा है। अत: अपनी आवश्यकता अनुसार ही सुविधाएं रखनी चाहिए। ज्यादा परिग्रह जीवन के लिए बहुत दुखदायी है।


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