🚩आज गणेश चतुर्थी 2020 पर चंद्र दर्शन🌙 से बचने का समय प्रातः 09:15 से रात्रि 09:33 तक
बिंदास बोल @ ज्योतिष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से भगवान श्री गणेश का जन्मोत्सव गणपति प्रतिमा की स्थापना कर उनकी पूजा से आरंभ होता है और लगातार दस दिनों तक घर में रखकर अनंत चतुर्दशी के दिन बप्पा की विदाई की जाती है। इस दिन ढोल नगाड़े बजाते हुए, नाचते गाते हुए गणेश प्रतिमा को विसर्जन के लिये ले जाया जाता है। विसर्जन के साथ ही गणेशोत्सव की समाप्ति होती है। लेकिन इस बार कोरोना संक्रमण के चलते दिशा निर्देशो को ध्यान रखते हुए सभी श्रद्धालु घर मे ही मिट्टी के बने गणेश जी विसर्जन करेंगे।
🏵चंद्रमा के दर्शन करने पर लगता है मिथ्या कलंक
ज्योतिषाचार्य कृष्णामूर्ति पद्धति विशेषज्ञ डाॅ लता श्रीमाली ने बताया कि मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा के दर्शन नहीं करने चाहिये। इस दिन चंद्रमा के दर्शन करने पर मिथ्या कलंक लगता है। अतःगणेश चतुर्थी को चंद्र दर्शन निषिद्ध है। पुराण के अनुसार असावधानीवश चंद्र दर्शन हो जाने पर मिथ्या कलंक के दोष से बचने के लिए श्रीमद्भागवत के दशमस्कंध के 57 वें अध्याय का पाठ या श्रवण करना उत्तम बताया गया है। चंद्र दर्शन से बचने का समय प्रातः 09:15 से रात्रि 09:33 तक है।
🏵ऐसे करे गणेश को प्रसन्न
गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए गणेश अथर्वशीर्ष एवं संकटनाशन गणेश स्तोत्र का पाठ शुभ फलदायी होता है। साथ ही 1,000 मोदक अर्पित करते हुए गणेश जी के सहस्र नामावली का पाठ मनोवांछित फल प्रदान करता है।
🚩गणेश चतुर्थी पर गणेश पूजन का शुभ मुहूर्त
ज्योतिषाचार्य डॉ रवि शर्मा ने बताया कि 22 अगस्त, 2020 को भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी तिथि सूर्योदय से प्रारम्भ हो जायेगी। गणेश पूजन का समय मध्यान्ह काल दोपहर 11:12 से दोपहर 01:46 तक रहेगा जिसमें स्थिर लग्न वृश्चिक लग्न दोपहर 12:31 से दोपहर 01:46 तक रहेगा एवं शुभ का चौघड़िया प्रातः 07:41 से प्रातः 09:17 तक, चर-लाभ-अमृत का चौघड़िया दोपहर 12:29 से सायं 05:17 तक रहेगा।
🚩 अभिजित मुहूर्त दोपहर 12:29 से दोपहर 12:53 तक रहेगा।
🏵चतुर्थी तिथि 21 अगस्त, 2020 को रात्रि 11:03 से प्रारम्भ होकर 22 अगस्त,2020 को सायं 07:57 तक समाप्त होगी।
🏵बच्चो का डंडा बजकर खेलने की परम्परा
गणेश चतुर्थी को डंडा चौथ भी कहा जाता है। गणेश जी को ऋद्धि-सिद्धि व बुद्धि का दाता भी माना जाता है। मान्यता है कि गुरु शिष्य परंपरा के तहत इसी दिन से विद्याध्ययन का शुभारंभ होता था। इस दिन बच्चे डण्डे बजाकर खेलते भी हैं। इसी कारण कुछ क्षेत्रों में इसे डण्डा चौथ भी कहते हैं।
गणेश चतुर्थी के दिन प्रात:काल स्नानादि से निवृत होकर गणेश जी की प्रतिमा बनाई जाती है। यह प्रतिमा सोने, तांबे, मिट्टी या गाय के गोबर से अपने सामर्थ्य के अनुसार बनाई जा सकती है। इसके पश्चात एक कोरा कलश लेकर उसमें जल भरकर उसे कोरे कपड़े से बांधा जाता है। तत्पश्चात इस पर गणेश प्रतिमा की स्थापना की जाती है। इसके बाद प्रतिमा पर सिंदूर चढ़ाकर षोडशोपचार कर उसका पूजन किया जाता है। गणेश जी को दक्षिणा अर्पित कर उन्हें 21 लड्डूओं का भोग लगाया जाता है।
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