बिंदास बोल @ लेख
स्वंयभू महान नेता सचिन पायलट ने पार्टी से बगावत करके पद व प्रतिष्ठा और पार्टी की वफादारी खो दी बदले में मिला लम्बा इंतजार कब खत्म होगा ये अल्हा जानें ! राज्य के पहले कांग्रेसी नेताओं में पायलट का नाम दर्ज हो गया जो बागी होकर राजनीति में सब कुछ गवां बैठे जो भीड़ इन्हें इन दिनों घेरे हुए हैं वो जब इन्हें कोई पद नहीं मिलेगा तब धीरे धीरे सिकुड़ते जाएगी क्योंकि किसी भी नेता के लिये सत्ता व किसी पद की कुर्सी होना जरूरी है अगर सत्ता नहीं तो कुछ भी नहीं ....कुछ भी नहीं......कुर्सी रहित रहने की उदासी पायलट अपने राजनीतिक जीवन में पहली बार जल्दी ही महसूस करने लगेंगे ऐसी स्थिति में उन्हें अपने समाज की याद आई है जिसे आरक्षण का लाभ देने के लिए मुख्यमंत्री को उन्होंने पहली दफा पत्र लिखा है जिस समाज का नेतृत्व पायलट करने की इच्छा पाल रहें हैं उसके लिये उन्होंने उप मुख्यमंत्री रहते हुए कभी आवाज नहीं उठाई वो क्या समाज से छिपी है ?
आरक्षण की जंग लड़ने वाले गुर्जरों ने लम्बा संघर्ष किया है जिनका नेतृत्व कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला ने किया है क्या कभी सत्ता में रहते हुए पायलट ने कर्नल की मांग का समर्थन किया है ? जब पायलट केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकार में मंत्री रहें हैं तब उन्हें अपने समाज की याद आई ? जवाब है नहीं ! तो फिर उस समाज के लिए अब टेसुए बहाने को कौन स्वीकार करेगा ? पायलट के समर्थन में इस समय गुर्जर समाज के युवाओं की अच्छी खासी तादाद है लेकिन बुजुर्ग नेताओं का आभाव है जो अपने समाज के करता धर्ता माने जाते हैं अपनी जाति के वोट मिलना अलग बात है और नेता के रूप में स्वीकार करना अलग बात है याद होगा कर्नल बैंसला को सवाई माधोपुर से भाजपा ने लोकसभा की उम्मीदवारी दी थी वो भी उस समय जब उनकी अपने समाज में तूती बोलती थी मग़र चुनावी नतीजा बैसला के पक्ष में नहीं आया ।
जिस गुर्जर-मीणा जातिय मेलजोल से स्वंय पायलट व उनके पिता राजेश पायलट और माता रमा पायलट चुनाव दोसा लोकसभा क्षेत्र से जीतते थे उसी ने बैंसला को हरा दिया और नमोनारायण मीणा को विजयी बनाया इससे स्पष्ट है कि जातिय राजनीति अलग बात है चुनाव अलग बात है उस चुनाव के बाद बैंसला ने चुनाव मैदान की तरफ देखा तक नहीं इस कारण पायलट को अपने समाज का चुनाव में सहयोग मिल सकता है समाज का नेतृत्व नहीं मिलेगा कांग्रेस की सरकार जिसे वे खुद की बनाई कहते हैं उससे बगावत कर गुरुगांव के एक रिशोर्ट में अल्पमत में आने की घोषणा करना कोई कांग्रेसी नेता नहीं भूल सकता और न ही पार्टी आलाकमान ।
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