कोरोना काल मे रेनू ने निभाया देश की बेटी होने का कर्तव्य


💥राष्ट्रीय बालिका दिवस विशेष💥

"अपने लिए जिए तो क्या जिए ,जी तू ए दिल ज़माने के लिए"

बिंदास बोल @ जयपुर : मानवता की सेवा करने वाले हाथ उतने ही धन्य होते हैं जितने परमात्मा की प्रार्थना करने वाला मन।

भारत भूमि जहाँ मदर टेरेसा, महात्मा गांधी जैसे परोपकारी व दूसरों की निस्वार्थ भाव से सेवा करने वाले लोगों की कमी नही वहीं कुछ ऐसे लोग भी हैं जो उन्ही के पदचिह्नों पर चलकर यथासम्भव असहाय व जरूरतमंदों की मदद कर रहे हैं।कोरोना के डर से जब परिजन ही अपनों की सेवा व देखभाल करने में हिचक रहे हैं जयपुर में एक मिसाल कायम की है सम्पर्क की स्टेट कॉर्डिनेटर रेनू शब्द मुखर ने।

शिक्षा साहित्य व सेवा कार्यो में अग्रणी रेनू ने अपने भाई विकास को कोरोना के कड़े जाल से निकाल लिया। अस्पताल  में हर पल साथ रह कर उसको एक नई जिंदगी दी व अपनी  जान हथेली पर रख कर उसकी  सेवा की । ज्ञान विहार स्कूल की हिंदी विभाग अध्यक्ष रेनू शर्मा न केवल अपने विद्यार्थियों को परोपकार की सीख देती रही हैं बल्कि आज स्वयं के उदाहरण से अपनी कथनी करनी को एक कर दिखाया है ।रेनू के भाई विकास की अचानक खांसी के साथ तबीयत खराब होने लगी तो डॉक्टर की सलाह पर विकास का सिटी स्कैन  करवाया गया जिसमें देर रात उसको कोरोना पॉजिटिव बताया गया । चूंकि रेनू के पापा मम्मी बुजुर्ग हैं तो उसने उनको हिफाजत से रखने के लिए खुद को मजबूत बनाया । वो रात को ही अपने भाई को आर.यू.एच. एस हॉस्पिटल ले गई ,वहाँ विकास को भर्ती करवाया । चूंकि सरकारी हॉस्पिटल होने के कारण वहाँ मरीज के साथ कोई घर का अटेंडेंट जरूरी होता है । इस पर कोरोना पोजिटिव भाई के साथ रेनू ने खुद ही रहने का फैसला किया । उसके पिता हनुमान प्रसाद जी ने भी अपनी बेटी का होंसला बढ़ाते हुए  बेटे बेटी की हिम्मत बंधाई ।  यह हॉस्पिटल कोरोना पॉजिटिव मरीजों के लिए राज्य सरकार ने संरक्षित कर रखा है । ऐसे में यहाँ बहुत सारे  बुजुर्ग कोरोना मरीज़ भी हैं लेकिन उनकी सेवा के लिए साथ मे कोई नही है तो ऐसे में रेनू ने  उनकी सेवा में भी कोई कसर नहीं छोड़ी।

"समय आने पर बेटियाँ भी निभाती है जिम्मेदारी उसी प्राणपण से जिसके लिए हम सिर्फ बेटों को ही उत्तरदायी समझते हैं।"

परिवार ही नही हॉस्पिटल में दो अन्य मरीज़ जो विकास के पास वाले बेड पर थे,  अविनाश और अभिमन्यु जिसमें उसे अपने छोटे भाई की झलक दिखाई दे रही थी, उनकी भी देखभाल की। उसको गर्म पानी पिलाना, खाना देना, उनका बाहर का काम करना आदि। उसने बिना डरे हुए उन दोनों अनजान भाइयों की भी सेवा की।रेनू का मानना है कि "मुझे किसी का दुख नहीं देखा जाता और मेरा जीवन तो मैं शिक्षा,साहित्य और सामाजिक सरोकारों को समर्पित  है ही तो फिर सेवा करने में कैसी हिचकिचाहट।"

कहते हैं कि 'हिम्मते मर्दा, मदद ए खुदा' हॉस्पिटल के जिस फर्स्ट और फोर्थ फ्लोर पर रेनू अपने भाई के साथ थी उसके सेवाभावी व्यवहार से सारे मरीज़ और नर्स, डॉक्टर, वार्डबॉय सब उसे दुआ देते थे। मानव सेवा ही सच्ची प्रार्थना व मानव धर्म है। रेनू न केवल महिलाओं के लिए आदर्श है वरन सम्पूर्ण युवाओं के लिए भी एक उदाहरण है कि अगर जीवन की दिशा को मानव सेवा ,परोपकार व परमार्थ की और मोड़ दिया जाए तो जीवन सार्थक हो जाता है। बुरा वक़्त ही सही समय है अपनों का साथ निभाने का, मानव धर्म निभाने का। रेनू ने निभाया देश की बेटी होने का कर्तव्य।। बालिका दिवस पर रेनू के कर्तव्य को सलाम ।।

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