बिंदास बोल @ जयपुर : सम्पर्क संस्थान के तत्वावधान में मंगलवार को जयपुर के होटल ग्रांड सफारी में वरिष्ठ पत्रकार अनिल लढ़ा की पुस्तक ‘आपातकाल’ का विमोचन किया गया। इसके मुख्य अतिथि मुख्यमंत्री के विशेषाधिकारी एवं साहित्यकार फारूक आफरीदी, सूचना आयोग राजस्थान के आयुक्त नारायण बारेठ, पूर्व संयुक्त निदेशक जनसंपर्क वरिष्ठ उपन्यासकार प्रोफेसर प्रबोध गोविल, प्रमुख कवयित्री वीना करमचंदानी, डॉ.अखिल शुक्ला, प्रदेश समन्वयक रेनू शब्दमुखर ने पुस्तक का लोकार्पण किया। पुस्तक में 62 आलेख सम्मिलित हैं ।
💥मुख्य अतिथि फारूक आफरीदी ने अनिल लढ़ा की पुस्तक आपातकाल को संग्रहणीय और समय को सही मायनों में दर्ज करने वाली पुस्तक बताते हुए कहा कि वैश्विक महामारी कोरोना हमारे समय की एक बड़ी त्रासदी है जिसने मानव जीवन समय को कष्टप्रद बनाया लेकिन मानवता की सेवा और समाज के प्रति सहिष्णु रहने की प्रेरणा भी दी है। देश और दुनिया ने देखा है कि व्यवस्था का चरित्र सदैव निर्मम होता है। लेकिन उसे नजर अंदाज करते हुए मानव समाज ने एक दूसरे का सहयोग कर पीड़ित मानवता की मिसाल पेश की है। इस कठिन समय में अनिल लढा ने एक जिम्मेदार पत्रकार की भूमिका निभाते हुए कोरोना काल के विभिन्न अनुभवों को एक दस्तावेज के रूप में समाज को समर्पित कर जो उपकार किया है वह अपने आप में महत्वपूर्ण है। यह इस त्रासदी को समझने की दृष्टि से आनेवाली पीढ़ी के लिए उपयोगी दस्तावेज है।
💥संपादक अनिल लढ़ा ने कहा कि उन्होंने 'आपातकाल' पुस्तक में वैश्विक महामारी कोरोना काल के दौरान देश ही नही विदेश के भी मीडिया कर्मियों व वरिष्ठ साहित्यकारों के लोक डाउन के अनूठे संस्मरण संजोने का प्रयास किया है । इस पुस्तक को निकालने का मकसद यह था कि हमारे पत्रकार साथी जो कोरोना वायरस के रूप में फ्रंट लाइन पर आकर अपनी जान जोखिम में डालकर सेवाएं दे रहे थे, उनके सम्मान को रेखांकित किया जा सके। इस कृति से आने वाली पीढ़ियों को इस वक्त के हालातों से रूबरू कराना भी एक मकसद रहा है।
💥राजस्थान के सूचना आयुक्त नारायण बारेठ ने कहा पुस्तकें आदमी का मानसिक और बौद्धिक विकास करती है और हमें अपने समाज तथा संस्कृति को समझने की सीख देती हैं।भारत की सभ्यता और संस्कृति की जानकारी किताबों से ही होती हैं। दुर्भाग्य से आज पढ़ लिख कर भी सद्भाव की बजाय हम नफरत क्यों पालते हैं, यह चिंता की बात है । उन्होंने आशा दर्शायी कि कोरोना कॉल पर लिखी गई यह किताब एक ऐतिहासिक दस्तावेज होगी।
💥समारोह के अध्यक्ष प्यारे मोहन त्रिपाठी ने कहा कि राजस्थान देश का पहला ऐसा राज्य है जिसमें आम लोगों को जागरूक करने के लिए चुनौती का सामना करते हुए जन आंदोलन चलाया। इस अवधि में जिसने भी सावधानी बरती उसने सभी चुनौतियों का सामना करते हुए संकटों के बावजूद अपने जीवन को वापस पटरी पर लेन में सफलता प्राप्त की ।
💥विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार प्रोफ़ेसर प्रबोध गोविल ने कहा कि "आपातकाल" पुस्तक के माध्यम से संपादक अनिल ने भय, सतर्कता और अहसास को भविष्य की सावधानी के लिए सचेत कर दिया है जो एक पत्रकार का ज़िम्मेदारी भरा कदम है। संपादक ने समय की त्रासदी को शब्दों में बांध कर विपदा से लड़ने का हथियार बनाने का अनूठा उदाहरण पेश किया है जो स्वागत योग्य है।
💥विशिष्ट अतिथि साहित्यकार और स्वतंत्र पत्रकार वीना करमचंदाणी ने कहा कि कोरोना काल हमें कई कड़वे कसैले अनुभव दे कर गया तो फ्रंट पर खड़े कोरोना वॉरियर्स के साहस और सेवा भाव के अनुकरणीय उदाहरण भी देखने को मिले । उन्होनें कहा एक साहित्यकार का नैतिक दायित्व है कि वह अपनी रचना में सच और तथ्य को प्रस्तुत करे । प्रारंभ में डॉ. अखिल शुक्ला के स्वागत वक्तव्य के साथ ही रेनू शब्दमुखर ने संस्थान के सामाजिक सरोकार और साहित्यक गतिविधियों का परिचय प्रस्तुत किया। मंच संचालन डॉ आरती भदौरिया ने किया।
इस अवसर पर संस्थान के अशोक लढा, वरिष्ठ संरक्षक विमल चौहान, महासचिव सुनील अग्रवाल, वरिष्ठ कवि हितेश व्यास, अनुकृति की संपादक दो जयश्री शर्मा, नारी कभी ना हरी संगठन की अध्यक्ष वीणा चौहान, ज्ञानवती सक्सेना, आशा पटेल, विजयलक्ष्मी जांगिड, जयश्री कँवर राठौड़, एकता शर्मा सहित कई रचनाकार व गणमान्य लोग मौजूद थे।
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