जिन धर्म सेविका सुशीला पाटनी " व्रत गुण शीला" उपाधि से सम्मानित


💥पार्श्वनाथ कथा : इंसान में जीव के मोह जागृत रहेंगे, उन्हे सत्य-असत्य नजर आता रहेगा : मुनि प्रणम्य सागर

बिंदास बोल @ जयपुर :  राजधानी में पहली बार चातुर्मास कर रहे आचार्य विद्या सागर महाराज के शिष्य अर्हं ध्यान योग प्रणेता मुनि श्री प्रणम्य सागर गुरूदेव ससंघ के सानिध्य में मानसरोवर के मीरा मार्ग स्थित आदिनाथ भवन में चल रही "पार्श्वनाथ कथा" के दौरान गुरुवार को मुनिश्री ने अपने आशीर्वचन देते हुए कहा कि "व्रत और शील से जो युक्त होता है वो ही सम्मान पाने के लायक होते है। बारह भावनाओं के मर्म को समझाते हुए मुनि श्री ने कहा कि इंसान में जब तक जीव के मोह जागृत रहेंगे, उन्हे सत्य-असत्य नजर आता रहेगा, दुख देने वाले सुख देने वाले लगते है, अहितकारी-हितकारी नजर आने लगते है। सिर्फ निर्गंथ गुरु और जिनवाणी सत्य सुना सकती है। बारह भावनाओं में छः भावनाएं अनित्य-अशरण, संसार, एकत्व, अन्यत्व एवं अशुचि भावनाओं पर आशीर्वचन दिए।

समिति के अध्यक्ष सुशील पहाडिया व मंत्री राजेंद्र कुमार सेठी ने जानकारी देते हुए बताया की गुरुवार को पार्श्वनाथ कथा का शुभारभ जिन धर्म सेविका और व्रत श्रेष्ठी सुशीला पाटनी (आर के मार्बल) द्वारा चित्र अनावरण, दीप प्रवज्जलन, पाद प्रक्षालन एवं शास्त्र भेंट कर किया गया। इस दौरान महिला जागृति परिषद की अध्यक्षा सुशीला रावंका और मंत्री रश्मि सांगानेरिया सहित अन्य पदाधिकारियों द्वारा जिन धर्म सेविका सुशीला पाटनी का दुप्पटा पहनाकर व संरक्षक निशा पहाड़िया द्वारा स्मृति चिन्ह देकर स्वागत सम्मान किया । साथ ही मुनिश्री के सानिध्य में  पंडित शीतल प्रसाद, समाजश्रेष्ठी नन्द किशोर, प्रमोद पहाड़िया द्वारा जिन धर्म सेविका सुशीला पाटनी को "व्रत गुण शीला की उपाधि से सम्मानित कर प्रशस्ति चिन्ह भेंट किया गया।

💥दशलक्षण पर्व पर होगी दस दिवसीय विधान पूजन

समिति के कोषाध्यक्ष लोकेंद्र जैन (राजभवन) ने बताया कि जैन धर्म में दशलक्षण पर्व अति महत्वपूर्ण स्थान रखता है, यह दशलक्षण पर्व 8 सितंबर से प्रारंभ होकर 17 सितंबर को अनंत चतुर्दशी पर संपन्न होगे, चौदस और पूर्णिमा एक तिथि होने पर दोनो पर्व 17 को ही संपन्न होगे, इसके पश्चात जैन धर्म के प्रमुख सिद्धांत "जिओ और जीने दो" चरितार्थ करने वाला सबसे महत्वपूर्ण पर्व "क्षमावाणी" 18 सितंबर को अर्हं ध्यान योग प्रणेता मुनिश्री प्रणम्य सागर जी महाराज ससंघ सानिध्य में मनाया जायेगा। दस दिवसीय दशलक्षण पर्व के दौरान प्रतिदिन प्रातः 5 बजे योग साधना, 6 बजे से 7 बजे तक मुनि प्रणम्य सागर महाराज के प्रवचन, 7 बजे से श्रीजी का कलशाभिषेक, शांतिधारा एवं दशलक्षण पर्व दस धर्मों पर आधारित विधान पूजन, दोपहर 1.30 बजे स्वाध्याय, 4 बजे प्रतिक्रमण, शाम 6 बजे श्रीजी की महामंगल आरती, 7 बजे से 8 बजे तक विद्वानों द्वारा स्वाध्याय और रात्रि 8 बजे से 10 बजे तक सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन प्रतिदिन दस दिनों तक आयोजित होगे।                      

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